Thursday 6 October 2016

बचपन

पल वो बहुत याद आते है  जब देखती हूँ  गलियों में  बच्चो को खेलते हुए....
आँखों में आंसू आ जाते है  जब देखती हूँ उनको मिट्टी को मेलते हुए। ..

दादी की कहानियां याद आती है ,बचपन की शैतानिया याद आती है। ..
टीचर की वो डांट याद आती है,माँ का वो दुलार याद आता है। ..

अपना ही बुना हुआ सँसार याद आता है..
और बस फिर ये पागल मन बचपन की यादों  में खीचा चला जाता है। ..

ना कोई फिक्र थी ,न किसी बात की टेंशन। ..
बस पागलो की तरह हसने पर मिल जाती थी अटेंशन। ..

मिल जाते दिन अगर वो वापिस तो हम झूम जाते। ...
नानी के घर जाते जाकर खूब मिठाई कहते...

पापा  को घोड़ा बनाते ,छुक छुक गाड़ी चलाते। ...
टीवी पर बस कॉर्टून देख अपना मन बहलाते। ...

काश हमें वो दिन बचपन के वापस ही मिल जाते। ....
हँसते गाते मौज़ मनाते सब  मिलकर शोर मचाते ..


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